किसी गाऊं में एक किसान रहता था | वह बड़ा सज्जन, सुशील और अत्तिथिपूजक था | उसके घर में जो अत्तिथि पधारते वह उनकी बड़ी आवभगत करता था | विदाई के समय वह अत्तिथि को काफी दूर तक छोड़ने जाता और अंत में उन्हें सौ रूपए देते हुए उनकी पीठ पर धीरे से एक जूता मर देता था | अत्तिथि इस प्रकार की विचित्र हरकत से चकित रह जाते थे | मेहमानबाज़ी की प्रशंसा के साथ ऐसा अटपटा व्यवहार सबकी चर्चा का विषय बन गया था |
समीपवर्ती गाऊं में रहने वाले किसी सज्जन ने जब किसान की ऐसी विचित्र अत्तिथि - सत्कार की बात सुनी तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ किन्तु बाद में उसने सोचा ऐसे अत्तिथिपूजक व्यक्ति के अभद्र व्यव्हार के पीछे अवश्य कुछ राज़ होना चाहिए | उसने इसके पीछे छुपे राज़ को खोजने का निर्णय किया |
किसी काम से वह किसान के गाऊं आया और उसी के घर अत्तिथि बनकर ठहरा | किसान ने उसका खूब अच्छा अत्तिथ्य किया | कार्य पूरा होते ही उस सज्जन ने किसान से विदा ली | किसान भी उसे दूर तक पहुचने गया | मेहमान सोच रहा था " जब वह सौ रूपए देकर मुझे जूता मरेगा, तब मैं इससे ऐसा करने का कारण अवश्य पूछ लूंगा|"
इस बार आश्चर्य की बात यह रही कि किसान ने उसे एक सौ के बदले दो सौ रूपए दिये | उसकी पीठ पर जूता मरने के बजाय बड़े प्रेम से उसकी पीठ पर थपकियाँ लगाई और पुनः अपने घर आने का आघ्राह भरा निमंत्रण दिया |
सज्जन ने कहा - " भाई मेरे साथ ऐसा वर्ताव क्यों ?
किसान ने कहा - " अगर तुम्हे इसका कारण जानना है तो वापस घर चलो |"
मेहमान कारण जानने को उत्सुक था अतः वह वापस किसान के साथ घर लौट आया | उसे लौटते हुए देख कर किसान के बच्चे खुशी से " काका आये ! काका आये !" कहकर सज्जन से लिपट पड़े |
किसान ने मेहमान की ओर देखते हुए कहा - " देखो तुमने चार दिन में बच्चों को किस प्रकार अपना बना लिया है | यह बच्चे तुम्हारे स्नेहपूर्ण व्यवहार से खुश है |" आज तक कोई मेहमान ऐसा नहीं आया जिसने बच्चों को स्नेेह दिया हो | पत्नी भी आने वालों से परेशान रहती है क्यूंकि आगंतुक न समय पर खाना खाते है न समय पर सोते है | असमय काम बता कर बच्चों व बड़ों को परेशान करते है | और अपनी गलत आदतों का कुप्रभाव बच्चों पर छोड़ जाते है | ऐसे व्यक्ति वास्तव में अत्तिथि बनने के योग्य नहीं होते | ऐसे अत्तिथियों को मैं विदा करते समय एक सौ रूपए देकर उनके पीठ पर जूता इसलिए मरता हूँ ताकि वे पहले मेहमान बनना सीखे | थोड़े दिनों में तुमने सभी के दिल में अपना स्थान बना लिया | इसीलिए मैनें तुम्हारी पीठ थपथपाई थी |"
किसान के विचित्र व्यवहार का राज़ जानकार सज्जन को बड़ी प्रसन्ता हुई | उसने कहा - मैंने अपनी माँ से बाल्यावस्था में यह शिक्षा पाई थी - " मान दे मान पाये"
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